दैनिक जागरण के नियमित स्तम्भ "फिर से" में फिर से प्रकाशित मेरा लेख: (यह लेख 13 अप्रैल 2010 को "समाप्त होती संवेदनाएं" शीर्षक के साथ प्रकाशित हुआ था)
"खत्म होती संवेदनाएं"
4 जून 2010
(पढने के लिए लेख की कतरन पर चटका लगाएं)
http://premras.blogspot.com/2010/06/blog-post_3161.html
सम्बंधित लेख:
आखिर संवेदनशीलता क्यों समाप्त हो रही है?
एक बेहोश व्यक्ति की जीवन के लिए जद्दोजहद
ख़त्म हो गई इन्साफ की आस
0 comments:
Post a Comment