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जनसत्ता" में "आतंक का मज़हब"
दैनिक समाचार पत्र
"जनसत्ता"
में:
आतंक का मज़हब
1 मार्च 2013
मेरे ब्लॉग "प्रेम रस" पर इस लेख को पढने के लिए यहाँ क्लिक करें
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ग़ज़ल: प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ
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प्यार की है फिर ज़रूरत दरमियाँ हर तरफ हैं नफरतों की आँधियाँ नफरतों में बांटकर हमको यहाँ ख़ुद वो पाते जा रहे हैं कुर्सियाँ खुलके वो तो जी रहे हैं ज़िन्दग...
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