हरिभूमि में मेरा व्यंग्य: "निगम की चाल!"

दैनिक समाचार पत्र "हरिभूमि" के आज के संस्करण में मेरा व्यंग्य:

निगम की तर्ज़ पर सफाई
23 नवम्बर 2010

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दैनिक जागरण में: हिंदी से हिकारत क्यों

समाचार पत्र "दैनिक जागरण" के राष्ट्रिय संस्करण के कॉलम "फिर से" में फिर से प्रकाशित...
(यह लेख पहले 14 जुलाई को भी दैनिक जागरण में प्रकाशित हो चुका है)

हिंदी से हिकारत क्यों
8 नवम्बर 2010

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खबर इंडिया में: दुनिया में आतंक का दंश

मासिक ई-पत्रिका "खबर इंडिया" के नवम्बर अंक में मेरा लेख:

दुनिया में आतंक का दंश
नवम्बर-2010

(पढने के लिए लेख की कतरन पर चटका लगाएं)


आज सारे विश्व को आतंकवाद ने घेरा हुआ है। अलग-अलग देशों में हिंसक गतिविधियों के अनेकों कारण हो सकते हैं, परन्तु आमतौर पर यह प्रतिशोध की भावना से शुरू होती है। प्रतिशोध के मुख्यतः दो कारण होते है, पहला कारण किसी वर्ग विशेष अथवा सरकार से अपेक्षित कार्यों का ना होना तथा दूसरा कारण ऐसे कार्यों को होना होता है जिनकी अपेक्षा नहीं की गई थी। मगर आमतौर पर ऐसे प्रतिशोधिक आंदोलन अधिक समय तक नहीं चलते हैं। हाँ शासक वर्ग द्वारा हल की जगह दमनकारी नीतियां अपनाने के कारणवश अवश्य ही यह लम्बे समय तक चल सकते है। ऐसे आंदोलनों में अक्सर अर्थिक हितों की वजह से बाहरी हस्तक्षेप और मदद जुड़ जाती है और यही वजह बनती है प्रतिशोध के आतंकवाद के स्तर तक व्यापक बनने की। इन हितों में राजनैतिक, जातीय, क्षेत्रिए तथा धार्मिक हित शामिल होते हैं। कोई भी हिंसक आंदोलन धन एवं हथियारों की मदद मिले बिना फल-फूल नहीं सकता है। बाहरी शक्तियों के सर्मथन और धन की बदौलत यह आंदोलन आंतकवाद की राह पर चल निकलते हैं और सरकार के लिए भस्मासुर बन जाते हैं। तब ऐसे आंदोलन क्रिया की प्रतिक्रिया नहीं रह जाते, बल्कि संगठित होकर सशक्त व्यापार की तरह सुनियोजित तरीके से आगे बढ़ाए जाते हैं।

आतंकवाद के व्यापक स्तर पर बढ़ने में बेरोज़गारी भी काफी हद तक सहायक होती है। बेरोज़गार के साथ-साथ विलासिता का जीवन जीने के इच्छुक लोग भी असानी से आतंकवादी संगठनों के शिकार बन जाते हैं। परिवार के भरण-पोषण की चिंता तथा भोग विलास की आशा इन्सान को आसानी से हैवानियत की राह पर ले चलती है। वहीं हवाला का देशी-विदेशी नेटवर्क आसानी से आतंकवादी संगठनों के पैसे की आवश्यकता को पूरा कर देता है। आतंकवाद के पोषकों में एक और अहम कड़ी है 'भ्रष्टाचार', इसके बिना आतंकवाद के नेटवर्क का पूरा होना मुश्किल है। आतंकवाद से लड़ाई में यही वह क्षेत्र जिसमें सबसे अधिक मेहनत की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार के कारण ही आतंकवादी संगठन बहुत आराम से सुरक्षा ऐजेंसियों को धौका दे देते हैं। हथियार से लेकर वाहन तक सभी सुविधाएं पैसे के बल पर आसानी से मुहैया हो जाती हैं। भ्रष्टाचार नामक हथियार का सहारा लेकर ही यह लोग आसानी से आतंकवादी घटना को अंजाम देकर फरार हो जाते हैं।

सबसे हैरान करने वाली बात तो यह है कि जिस समुदाय के भी लोग ऐसे मामलों में संलिप्त पाए जाते हैं, उन्हे लगता है कि आरोपी बेकसूर हैं। इस मामले में सुरक्षा ऐजेंसियों तथा सरकार की नियत पर अविश्वास की भावना आग में घी का काम करती है। इसी के चलते समुदायों के नेतागण अन्जाने में ही आतंकवादी संगठनों की मदद कर देते हैं। सुरक्षा एजेंसियों की लापरवाही तथा इस क्षेत्र में फैला भ्रष्टाचार भी ऐसी धारणाओं के बनने में सहायक होता है। पिछली आतंकवादी घटनाओं पर नज़र दौड़ाएं तो पता चलता है कि हड़बड़ी में की गई गिरफ्तारियां तथा पूरे सबूत अथवा सही जांच के अभाव में बहुत से आरोपी बरी हुए हैं। इसके अलावा जो गिरफ्तार होते हैं उनके खिलाफ सबूत ना होने की अफवाहें फैला दी जाती हैं। ऐसी घटनाओं के कारणवश लोगों के हृदय में सुरक्षा ऐजेंसियों के विरूद्ध धारणाए घर बना लेती हैं, जिसका फायदा आतंकवादी संगठन बखुबी उठा लेते हैं।

आज कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक हजारों ऐसे आतंकवादी संगठन अपनी दुकाने चला रहे हैं। एक तरफ जहाँ कई संगठन धर्म के नाम पर तो वहीँ दूसरी तरफ नक्सलवादी तथा माओवादी संगठन क्षेत्र, भाषा तथा सामाजिक हित के नाम पर हिंसा फैला रहे हैं. धर्म के नाम पर पनप रहे आतंकवादी वारदातों में संसद भवन पर हमले का नाम सबसे ऊपर आता है, क्योंकि यह देश की अस्मिता और संप्रभुता पर हमला था। वहीँ दिल्ली, मुंबई, अहमदाबाद, अजमेर, जयपुर, मालेगांव, वाराणसी, हैदराबाद जैसे देश के विभिन्न शहरों में अनगिनत हमलों का दंश देश झेलता आ रहा है। इस कड़ी में पाकिस्तानी नागरिकों द्वारा मुंबई में हुए हमले को सबसे हिंसक आतंकवादी घटना के रूप याद किया जाता है। महाराष्ट्र, झारखण्ड तथा वेस्ट बंगाल समेत देश के कई राज्यों में माओवादी हमले भी सरकार का सिरदर्द बन गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय दबाव के चलते धार्मिक आतंकवाद में कुछ कमी दिखाई दी तो माओवादी देश के लिए बहुत बड़ा खतरा बन कर उभर रहे हैं।

बात जब धर्म का नाम लेकर फैलने वाले आतंकवादी संगठनो की होती है तो गहन विश्लेषण से पता चलता है कि ऐसे संगठन धार्मिक ग्रन्थों का अपने हिसाब से गलत विश्लेषण करके धर्म की सही समझ नहीं रखने वाले लोगों को अपने जाल में फांस लेते हैं। इसलिए धार्मिक संस्थाओ की भूमिका बढ़ जाती है, आज आवश्यकता इस बात की है कि ऐसी संस्थाएं धार्मिक ग्रंथो की सही-सही जानकारियों से लोगो को अवगत कराएं। मेरे विचार से यह आतंकवादी संगठनो की जड़ पर प्रहार है।

आंदोलनों चाहे छोटे स्तर पर हों अथवा आतंकवादी रूप ले चुके हों, इनको केवल शक्ति बल के द्वारा नहीं दबाया जा सकता है, बल्कि जितना अधिक शक्ति बल का प्रयोग किया जाता है उतनी ही अधिक ताकत से ऐसे आंदालन फल-फूलते हैं। आतंकवादी संगठन बल प्रयोग को लोगो के सामने अपने उपर ज़ुल्म के रूप में आसानी से प्रस्तुत करके और भी अधिक आसानी से लोगों को बेवकूफ बना लेते हैं। आतंकवादी तथा हिंसक आंदोलनों के मुकाबले के लिए सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा बल प्रयोग जैसे सभी विकल्पों को एक साथ लेकर चलना ही सबसे बेहतर विकल्प है। वहीं हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि पूरे समाज में आतंकवाद के खिलाफ जागरूकता फैलाई जाए। आज ऐसी आतंकवादी सोच के खिलाफ पूरे समाज को एकजुट होकर कार्य करने की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहला और बुनियादी कार्य आपसी भाईचारे को बढ़ाना तथा भ्रष्टाचार को समाप्त करना है।

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